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गेहूं का उत्पादन करने वाले किसान भाई इन रोगों के बारे में ज़रूर रहें जागरूक

गेहूं का उत्पादन करने वाले किसान भाई इन रोगों के बारे में ज़रूर रहें जागरूक

सर्दियों के मौसम में लगभग पूरे उत्तर भारत में गेहूं की फसल लगाई जाती है। इस फसल के लिए सर्दियां काफी अच्छी मानी गई है। गेहूं का अच्छा उत्पादन किसानों को मार्किट में इससे अच्छे दाम दिवा सकता है। लेकिन अगर कहीं आपकी फसल में किसी ना किसी तरह के कवक जनित व अन्य रोग लग जाएं तो ये गेहूं को बर्बाद भी कर सकते हैं। ऐसे में आपके मुनाफे में कमी तो होती ही है साथ ही आपको परेशानी का सामना भी करना पड़ता है। किसानों को इन सभी तरह के रोगों से सावधान रहने की जरूरत है। देश के ज्यादातर हिस्सों में गेहूं की बुवाई पूरी हो चुकी है और कुछ हिस्सों में इसकी बुवाई होना बाकी भी है। एक्सपर्ट की माने तो ये पाला आलू, सरसों समेत अन्य रबी फसलों के लिए नुकसान पहुंचाता है। वहीं अधिक सर्दी पड़ना गेंहूँ की सेहत के लिए बेहद लाभकारी है। आलू कम सिंचाई वाली फसल है। इसलिए फसल में अधिक पानी होना इसे कई बार नुकसान पहुंचाता है। आइए आज हम जानते हैं, कि और कौन-कौन से रोग गेहूं को नुकसान पहुंचाते हैं।

करनाल बंट रोग

यह गेहूं में होने वाला काफी प्रमुख रोग है। इस रोग की उपज मानी जाए तो यह रोग मृदा, बीज एवं वायु जनित रोग है। गेंहूँ में होने वाला करनाल बंट टिलेटिया इंडिका नामक कवक से पैदा होता है। इसे आंशिक बंट कहा जाता है। इस रोग के होने पर फसल पर लगने वाली बाली के अंदर काला बुरादा भर जाता है। ऐसा होने से पूरी फसल एकदम खराब हो जाती है और उससे सड़ी हुई मछली जैसी बदबू आती है। यह रोग ट्राईमिथाइल एमीन के कारण होता है। यह गेहूं के बड़े क्षेत्र को प्रभावित करता है। इसलिए इस रोग को गेहूं का कैंसर भी कहा जाता है।

अनावृत कंड रोग

यह रोग भी काफी मात्रा में इस फसल को प्रभावित करता है। गेहूं में होने वाला प्रमुख रोग अनावृत कंड लूज स्मट के नाम से भी जाना जाता है। यह बीज जनित रोग है। इसका सबसे बड़ा कारण अस्टीलेगो न्यूडा ट्रिटिसाई नामक कवक है। इस रोग में गेहूं के पौधों की सारी बालियां काली होने लगती है। एक बार बालियां काली हो जाने के बाद में पौधा सूख जाता है। यह बड़े फसली क्षेत्र को प्रभावित करता है, इसके होने पर गेहूं की उत्पादकता तेेजी से घटती है।
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चूर्णिल आसिता रोग

चूर्णिल आसिता मृदा एवं हवा से होने वाला रोग है। इसका प्रमुख कारण ब्लूमेरिया ट्रिटिसाई नामक कवक है। इस रोग के होने पर पौधों की पत्ती, पर्णव्रतों और बालियों पर सफेद चूर्ण जम जाता है। बाद में यह पूरे पौधे पर फैल जाता है। प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया बंद होने के कारण पौधे की मौत हो जाती है।

लीफ ब्लाइट रोग

यह रोग मुख्यत: बाईपोलेरिस सोरोकिनियाना नामक कवक से पैदा होता है। यह रोग सम्पूर्ण भारत में पाया जाता है। लेकिन इस रोग का प्रकोप नम तथा गर्म जलवायु वाले उत्तर पूर्वी क्षेत्र में अधिक होता है। इस रोग में फसल की पत्तियों पर भूरे रन के धब्बे बनने शुरू हो जाते हैं। जो फसल के उत्पादन को प्रभावित करते हैं।
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फुट रांट रोग

यह रोग ज्यादा तापमान वाले हिस्से जैसे मध्य प्रदेश, गुजरात तथा कर्नाटक में ज्यादा फसलों को प्रभावित करता है और सोयाबीन-गेहूं फसल चक्र में अधिक होता है। यह रोग स्क्लरोसियम रोलफसाई नामक कवक से होता है, जो कि संक्रमित भूमि में पाया जाता है। इसमें पौधों की जड़ के ऊपर काले और सफ़ेद फफूंद लगने लगते हैं। जो पौधे की जड़ को ही सड़ा देता है और रोगी पौधा मर जाता है।
जनवरी के महीने में कुछ सावधानी बरतते हुए किसान अपने गेहूं का उत्पादन कर सकते हैं डबल

जनवरी के महीने में कुछ सावधानी बरतते हुए किसान अपने गेहूं का उत्पादन कर सकते हैं डबल

देशभर में कड़ाके की ठंड पड़ रही है और यह सभी के लिए इस समस्या का कारण बनी हुई है। उत्तर भारत में ठंड के हालात बहुत बुरे हैं और बहुत सी जगह तापमान 0 डिग्री सेल्सियस से भी नीचे पहुंच गया है। ऐसे में किसानों ने जो रबी की फसल उगाई थी उसका उत्पादन चरम सीमा पर है। गेहूं का उत्पादन अक्टूबर के महीने में किया जाता है और मार्च और अप्रैल के बीच की कटाई शुरु कर दी जाती है। ऐसे में जनवरी का महीना इस फसल के लिए बहुत ज्यादा अहम माना गया है। अगर जनवरी के महीने में स्पेशल पर ध्यान ना दिया जाए तो पूरी की पूरी फसल बर्बाद भी हो सकती है। साथ ही, अगर किसान थोड़ा सा ध्यान देते हुए इस महीने में फसल की देखभाल करें तो अपने उत्पादन को काफी ज्यादा बढ़ा सकते हैं। गेहूं की फसल की अच्छी उपज के लिए साफ सफाई बहुत जरूरी है। विशेषज्ञों का कहना है, कि गेहूं के साथ पैदा हुई खरपतवार फसल को नुकसान पहुंचाती है। इससे बचाव जरूरी है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, अब बिहार के विशेषज्ञों ने सलाह दी है, कि जरा सी सूझबूझ से जनवरी को खेती के लिहाज से कमाई का महीना बनाया जा सकता है। किसान जनवरी के महीने में अपनी फसल को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखते हुए सही रख सकते हैं।
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  • कृषि विभाग के एक्सपर्ट का कहना है, कि गेहूं की बुवाई पूरी हो चुकी है। तो ऐसे में इस महीने में फसल को खरपतवार से बहुत ज्यादा नुकसान होने का खतरा रहता है। गेहूं की फसल में पहली सिंचाई के बाद चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार पैदा हो जाते हैं। जो फसल को काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं। इससे बचाव के लिए 2.4-डी सोडियम साल्ट 80 प्रतिशत का 500 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव कर देना चाहिए। छिड़काव 25-30 दिनों में कर देना चाहिए.
  • अगर आपको खेत में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार नहीं दिख रहे हैं। आप के खेत में सक्रिय पत्ती वाले खरपतवार हैं, तो आप आइसोप्रोट्युरॉन 50 प्रतिशत का 2 किलोग्राम या 75 प्रतिशत का, 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब छिड़काव करें। यह छिड़काव फ्लैट फैन नोजलवारी स्पे मशीन से करें तो बेहतर रिजल्ट देखने को मिल सकते हैं।
  • छेद में तना करने वाले कीट भी गेहूं की फसल को काफी ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। अगर समय रहते इस कीट का इलाज न किया जाए तो यह पूरी की पूरी फसल को बर्बाद कर सकता है। इस तना छेदक कीट से छुटकारा पाने के लिए 10 फेरोमीन ट्रैप प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगाना चाहिए। यदि अधिक जरूरत है, तो डायमेथोएट 30 प्रतिशत ई.सी 750 का पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहिए।

देश के कुछ राज्यों में बढ़ गई है गेहूं की बुवाई

कृषि मंत्रालय द्वारा दिए गए आंकड़ों की बात की जाए तो पूरे भारतवर्ष में राजस्थान राज्य में गेहूं की बुवाई सबसे ज्यादा की गई है। अगर जगह के हिसाब से बात की जाए तो लगभग ढाई लाख हेक्टेयर भूमि पर गेहूं की बुवाई की गई है। राजस्थान के बाद दूसरा नंबर उत्तर प्रदेश का आता है और यहां पर लगभग दो लाख हेक्टेयर जमीन पर गेहूं की फसल बोई जा चुकी है। इसके बाद महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगढ़, बिहार, पश्चिम बंगाल, जम्मू और कश्मीर और असम में अधिक गेहूं की बुवाई की गई है। इस बार के गेहूं बुवाई के आंकड़े देखकर केंद्र सरकार खुश है। इस साल गेहूं के रिकॉर्ड उत्पादन की संभावना जताई जा रही है। किसान अगर इस महीने में जरा सा ध्यान देते हैं, तो अपना उत्पादन और आमदनी दोनों ही पिछले साल के मुकाबले बढ़ाई जा सकती है।
आजकल पड़ रही ठंड की वजह से गेंहू किसानों को अच्छा उत्पादन मिलने की संभावना

आजकल पड़ रही ठंड की वजह से गेंहू किसानों को अच्छा उत्पादन मिलने की संभावना

बागवानी फसलों हेतु ज्यादा ठंड उचित नहीं होती है। परंतु, कुछ नकदी फसलों की पैदावार को बढ़ाने के पीछे ठंड की अहम भूमिका रहती है। जिन नकदी फसलों में ठंड अच्छी साबित होती है वह हैं गेहूं एवं अगेती सरसों की फसल। आजकल सर्दियां सातवें आसमान पर हैं। वहीं कुछ फसलें जैसे आलू एवं सब्जियों का उत्पादन करने वाले कृषकों की चिंता से धड़कन तेज होती जा रही है। फसलों को पाले से हानि होने की संभावनाएं उत्पन्न होती जा रही हैं। साथ ही, कृषि विशेषज्ञों के माध्यम से निरंतर किसानों को सावधानी बरतने की राय दी जाती है। हालाँकि, ठंड के मौसम में गेहूं का उत्पादन करने वाले किसान बेहद खुश दिखाई दे रहे हैं, क्योंकि निरंतर गिरता तापमान गेहूं की फसल हेतु लाभदायक साबित होता है। इसकी वजह से किसानों को भी फसल की बेहतरीन पैदावार मिलने की संभावना लग रही है। हालांकि, सरसों की फसल की बुवाई में विलंब करने वाले किसानों के लिए भी यह समय थोड़ी-बहुत दिक्कतें खड़ी कर सकता है।

गेहूं के किसानों को अच्छा खासा उत्पादन मिलने की आशा है

द ट्रिब्यून (The Tribune) की एक रिपोर्ट के जरिए गेहूं का उत्पादन करने वाले किसान राजीव शर्मा ने बताया है, कि वर्तमान परिस्थितियां गेहूं की फसल हेतु बेहद फायदेमंद हैं। अगर आगामी हफ्तों में भी यथास्थिति बनी रहती है, तो यह इस वर्ष के बेहतरीन उत्पादन का कारण अवश्य रहेगी। सरसों की फसल हेतु भी हालात काफी अनुकूल हैं। परंतु, यदि तापमान इससे भी ज्यादा कम होता है। तब फसल प्रभावित होने की भी संभावना हो सकती है। साथ ही, एक और किसान मलकीत सिंह का कहना है, कि 'मैंने आठ एकड़ में गेहूं और 3 एकड़ में सरसों की बुआई की है। विगत वर्ष दोनों फसलों के उत्पादन में हानि देखने को मिली थी। आपको बतादें, कि सरसों की फसल एक संवेदनशील फसल मानी जाती है। इसमें यदि तापमान अधिक गिरता है, तो इस पर हानिकारक प्रभाव भी पड़ सकता है। हालाँकि, वर्तमान स्थिति में मौसम फसल के अनुकूल ही रहा है। इसलिए हमको इस वर्ष अच्छा उत्पादन मिलने की आशा है।
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विशेषज्ञों ने क्या कहा है

अंबाला जनपद के उप निदेशक (कृषि) डॉ. गिरीश नागपाल ने द ट्रिब्यून (The Tribune) की रिपोर्ट के माध्यम से कहा है, कि 'गेहूं की फसल हेतु मौसम फायदेमंद और अनुकूल है। साथ ही, यह मौसम वानस्पतिक वृद्धि में भी काफी सहायक साबित होगा। उन्होंने किसानों को सलाह के तौर पर यह भी कहा है, कि फसल में पानी एक तय समयावधि पर देना चाहिए, परंतु जिन किसानों ने सरसों की फसल की बुवाई विलंब से करी है। उनको जरा सा सावधान रहने की आवश्यकता है, क्योंकि सरसों की फसल एक संवेदनशील फसल के रूप में जानी जाती है। सरसों का उत्पादन करने वाले कृषकों को नियमित रूप से समय समय पर अपने खेतों पर जाकर फसल की स्थिति को देखना चाहिए। साथ ही, किसान अपनी फसल को पाले के प्रभाव से बचाने हेतु धुएं का प्रयोग करने के अतिरिक्त हल्की सी सिंचाई भी करें। यदि किसान ऐसा करेंगे तो उनकी फसल पाले के प्रकोप से बच सकती है।

सरकार लो टनल में सब्जियों की खेती करने पर देगी अनुदान

कृषि वैज्ञानिकों एवं विशेषज्ञों द्वारा निरंतर पाले से सब्जी फसलों के संरक्षण की सलाह दी जाती रही है। इस संदर्भ में अंबाला के जिला उद्यान अधिकारी वीरेंद्र पूनिया का कहना है, कि 'किसानों को अपनी सब्जी की फसल का पाले से संरक्षण हेतु लो टनल का उपयोग करना चाहिए। इसकी वजह यह है, कि अत्यधिक सर्दियाँ भी सब्जी की फसलों हेतु अच्छी साबित नहीं होती है। सरकार द्वारा भी लो टनल में खेती करने हेतु किसानों को आर्थिक एवं तकनीकी सहायता प्रदान की जाती है। इस संरक्षित ढांचे में सब्जियों की फसल मौसमिक प्रकोपों की मार के साथ-साथ कीटों के संक्रमण से भी बचाती है।